देश-विदेश

एक खोया हुआ खजाना जिसने लाओस में उजागर कर दी भारतीय संस्कृति

आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 10 अक्टूबर 2024 को जब लाओस पहुंचे तो वहां बच्चों के एक समूह ने गायत्री मंत्र के साथ उनका स्वागत किया। यह अनायास ही नहीं था।

सदियों पूर्व, संस्कृत लाओस की प्रमुख भाषा हुआ करती थी। हिन्दू और बौद्ध धर्म वहां एक समान प्रचलित और सम्मानित धर्म होते थे। शिवभक्ति वहां आज भी होती है। यह कहना है 60 अंतरराष्ट्रीय पुरातत्ववेत्ताओं के एक समूह का, जो वहां शोधकार्य कर रहा है।

दक्षिण-पूर्वी एशिया के इस देश में भारत में प्रचलित वस्तुओं जैसा सदियों पुराना एक बहुमूल्य ख़ज़ाना मिला है। 26 किलो सोने, चांदी और क़ीमती पत्थरों वाला यह ख़ज़ाना विभिन्न प्रकार के आभूषणों, बर्तनों, सजावटी वस्तुओं और पूजा-सामग्रियों के रूप में है। इन वस्तुओं की संख्या इतनी अधिक और दशा इतनी अच्छी है, कि कुछ चीज़ें तो बिलकुल नई-नवेली दिखती हैं।

ख़ज़ाने को देखकर सन्न : फ्रांसीसी पुरातत्ववेत्ता निकोला नौलो के नेतृत्व में 60 अंतरराष्ट्रीय पुरातत्वविदों की टीम इस ख़ज़ाने को देखकर सन्न रह गई! उसके लिए पहला प्रश्न यही था कि ये बहूमूल्य वस्तुएं जिस प्राचीन खमेर सभ्यता की देन हैं। उसके आरंभिक दिनों के बारे में भी क्या वे कुछ बता सकती हैं? क्या वे प्राचीन खमेर साम्राज्य के बहुचर्चित महानगर अंगकोर और उसके विस्मयकारी अंगकोरवाट मंदिरों के निर्माताओं के भी कोई अज्ञात रहस्य उद्घाटित कर सकती हैं?

पुरातात्विक शोध कार्यों के लिए आवश्यक सबसे आधुनिक उपकरणों से लैस यह टीम यह भी जानना चाहती थी कि जो अविश्वसनीय बहुमूल्य वस्तुएं मिली हैं, उन्हें बनाने की प्राचीन तकनीक व कला भला कैसी रही होगी? उनका उपयोग कौन करता रहा होगा? वे जानते थे कि धातु कर्म से बनी हर वस्तु पर उसे बनाने वाले के भी कुछ अमिट निशान रह जाते हैं। अत: सबसे पहले उन्होंने उस जगह की ज़मीन को स्कैन किया, जहां ख़ज़ाना मिला था। उन्होंने पाया कि वहां और अधिक उत्खनन की ज़रूरत है। खुदाई करने पर इस बार भी सोने की बनी कुछ दूसरी वस्तुएं तथा अस्थियों के रूप में मानवीय अवशेष मिले। हो सकता है कि ये अवशेष किसी प्राचीन राजा का सुराग दे सकें।

ख़ज़ाना एक किसान को मिला था : लाओस में हाल ही में मिला यह बहुचर्चित ख़ज़ाना वहां के सवानाखेत नाम के शहर से कोई 40 किलोमीटर दूर के एक गांव में एक किसान को मिला था। गांव का नाम है ‘नोंग हुआ थोंग।’ टीम के पुरातत्वविद ख़ज़ाने की जांच-परख के साथ-साथ उस जगह को भी देखना और जांचना चाहते थे, जहां ख़ज़ाना मिला था। यह सारा काम वहां मार्च 2024 तक चला।

चीन, थाईलैंड, कंबोडिया, म्यांमार और वियतनाम से घिरा लाओस एक ऐसा देश है जिसके पास कोई सागर तट नहीं है। जनसंख्या भी केवल 75 लाख है। वहां के लोग बौद्ध धर्मी हैं। उनकी भाषाओं में संस्कृत के भी अनेक शब्द मिलते हैं। हज़ार वर्ष पूर्व लाओस उस समय के लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर बड़े खमेर साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। आज का कंबोडिया ही उस समय का खमेर साम्राज्य था।

उसे कंबोज देश भी कहा जाता था। 9वीं सदी से वहां खमेर साम्राज्य का विस्तार होने लगा था। उसके वास्तुशिल्पी न केवल एक से एक विशाल महल, मूर्तियां और मंदिर बनाने लगे थे, बड़े पैमाने पर धान की खेती और पानी के सदुपयोग के लिए लंबी-लबी नहरें और झील-सरोवर भी बनाते

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